एक गज़ल और कुछ सवाल
बेशक संसार एक माया है
मगर यहाँ का हर पल एक सच है
हम हंस रहे हैं ये सच है
इस पर कोई सवाल नही
खुश हैं तो हंस रहे हैण
रो रहे हैं तो भी सच है
कोई सवाल नही दुखी हैं तो रो रहे हैं
लेकिन हर पल क्षणिक होता है
दूसरे पल हंसने वाला रो रहा होता है
य भी उसी का सच है लेकिन
उस सच पर पता नही ह क्यों
सवाल खडे कर देते हैं
जो एक शाश्वत सच है !
मौत एक शाश्वत सच है
मगर इसे स्वीकारने मे हम
कितने प्रश्न खडे कर देते हैं
इन्सान के स्वार्थ या अहं पर
जब चोट लगती है
तभी उसका मन सवाल पूछता है
हम सब को भी
तुम्हारी मौत को स्वीकारने मे
वक्त लगेगा, मगर स्वीकार लेंगे
मेरे भी कई सवाल वक्त के
अंधेरे मे खोते जा रहे हैं
तुम से जितनी शिकायतें थी
धूमिल होती जा रही हैं
और उनकी जगह जो दुख उपजता है
उसमे तुम्हारे लिये दया करुणा होती है
क्यों कि हम फिर उसी तरह
उसी तरह तो नही मगर किसी तरह
ज़िन्दगी की गाडी मे सवार हो विचरने लगे हैं
मगर तुम? इस दुनिया से दूर हो गये
पता नही क्या खाते होगे कैसे सोते होंगे।
कोई तुम्हएं वहाँ माँ जैसे
प्यार भी करता होगा या नहीं
अभी पूरी तरह तुम्हारी मौत को
स्वीकारा नही इस लिये
सवालों की गति चाहे धूमिल पड गयी है
मगर सवाल अभी भी पीछा नही छोडते
शायद जान बूझ कर
इनसे पीछा छुडवाना नही चाहते
इस पर एक शेर कहूँ?
तुम बहुत खुश होते थे न मेरे शेर सुन क्र
तो सुनो--- अभी एक शेर कहने लगी तो कई बन गये
सभी सुनो तुम्हारे लिये हैं । इस पर जो असली गज़ल लिखी थी
उसे बाद मे सुनाऊँगी
करूँ अब क्या मुझे ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे इन आँसुओ से दुश्मनी अच्छी नही लगती
नहीं वश मौत पर चाहे किसी का भी मगर सच है
किसी माँ को यूँ अर्थी निकलती अच्छी नही लगती
गया है चाँद पर जब से अकेली छोड कर उसको
ये चंदा और उसकी चाँदनी अच्छी नही लगती
जगेंगे रात भर अपने गमों के साये मे जी भर
बुझा दो दीप सारे रोशनी अच्छी नही लगती
गमों की शाम मे भाई हि कन्धा दे अगर उसको
नहीं हो साथ भाई का खुशी अच्छी नही लगती
बेशक संसार एक माया है
मगर यहाँ का हर पल एक सच है
हम हंस रहे हैं ये सच है
इस पर कोई सवाल नही
खुश हैं तो हंस रहे हैण
रो रहे हैं तो भी सच है
कोई सवाल नही दुखी हैं तो रो रहे हैं
लेकिन हर पल क्षणिक होता है
दूसरे पल हंसने वाला रो रहा होता है
य भी उसी का सच है लेकिन
उस सच पर पता नही ह क्यों
सवाल खडे कर देते हैं
जो एक शाश्वत सच है !
मौत एक शाश्वत सच है
मगर इसे स्वीकारने मे हम
कितने प्रश्न खडे कर देते हैं
इन्सान के स्वार्थ या अहं पर
जब चोट लगती है
तभी उसका मन सवाल पूछता है
हम सब को भी
तुम्हारी मौत को स्वीकारने मे
वक्त लगेगा, मगर स्वीकार लेंगे
मेरे भी कई सवाल वक्त के
अंधेरे मे खोते जा रहे हैं
तुम से जितनी शिकायतें थी
धूमिल होती जा रही हैं
और उनकी जगह जो दुख उपजता है
उसमे तुम्हारे लिये दया करुणा होती है
क्यों कि हम फिर उसी तरह
उसी तरह तो नही मगर किसी तरह
ज़िन्दगी की गाडी मे सवार हो विचरने लगे हैं
मगर तुम? इस दुनिया से दूर हो गये
पता नही क्या खाते होगे कैसे सोते होंगे।
कोई तुम्हएं वहाँ माँ जैसे
प्यार भी करता होगा या नहीं
अभी पूरी तरह तुम्हारी मौत को
स्वीकारा नही इस लिये
सवालों की गति चाहे धूमिल पड गयी है
मगर सवाल अभी भी पीछा नही छोडते
शायद जान बूझ कर
इनसे पीछा छुडवाना नही चाहते
इस पर एक शेर कहूँ?
तुम बहुत खुश होते थे न मेरे शेर सुन क्र
तो सुनो--- अभी एक शेर कहने लगी तो कई बन गये
सभी सुनो तुम्हारे लिये हैं । इस पर जो असली गज़ल लिखी थी
उसे बाद मे सुनाऊँगी
करूँ अब क्या मुझे ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे इन आँसुओ से दुश्मनी अच्छी नही लगती
नहीं वश मौत पर चाहे किसी का भी मगर सच है
किसी माँ को यूँ अर्थी निकलती अच्छी नही लगती
गया है चाँद पर जब से अकेली छोड कर उसको
ये चंदा और उसकी चाँदनी अच्छी नही लगती
जगेंगे रात भर अपने गमों के साये मे जी भर
बुझा दो दीप सारे रोशनी अच्छी नही लगती
गमों की शाम मे भाई हि कन्धा दे अगर उसको
नहीं हो साथ भाई का खुशी अच्छी नही लगती
5 comments:
Well said mummy.... We have everything in life one needs to be happy n contended ... BUT HIM... n the void he has created is so deep that no happiness in our life will be the same as it used to be or as we thought it wud be...
I have heard time is a great healer... Probably we dont want to be healed... Just to keep him alive... at least in our memories
skht htheli pe kudrt ki do cheer hai
ik jindgi ki hai our ik mout ki hai
maine jindgi ki cheer ko klm se ghra rng dia
mout ne hs ke kha teri syahi fiki hai
yhi sach hai lekin apni smritiyo me unhe uker kr hmesha apne ird gird mhsoos krne se koi nhi rok skta .
kudrt bhi nhi .
housla rkhe .
जगेंगे रात भर अपने गमों के साये मे जी भर
बुझा दो दीप सारे रोशनी अच्छी नही लगती
गमों की शाम मे भाई हि कन्धा दे अगर उसको
नहीं हो साथ भाई का खुशी अच्छी नही लगती
jab koi zazbati insan ke zazbaat marm tak jate hain to uski unubhuti iasi hi hoti hai........
करूँ अब क्या मुझे ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे इन आँसुओ से दुश्मनी अच्छी नही लगती
नहीं वश मौत पर चाहे किसी का भी मगर सच है
किसी माँ को यूँ अर्थी निकलती अच्छी लगती
निर्मला जी,
ये वो दर्द है जो जिन्दगी भर साथ रहना है,
पी कर ये विष जीना है कहना है न सुनना है.
फिर भी धैर्य के चादर तले कुछ पल जी लें,
क्योंकि ये गम तो दिल से नहीं निकलना है.
करूँ अब क्या मुझे ये ज़िन्दगी अच्छी नही लगती
मुझे इन आँसुओ से दुश्मनी अच्छी नही लगती
नहीं वश मौत पर चाहे किसी का भी मगर सच है
किसी माँ को यूँ अर्थी निकलती अच्छी लगती
निर्मला जी,
ये वो दर्द है जो जिन्दगी भर साथ रहना है,
पी कर ये विष जीना है कहना है न सुनना है.
फिर भी धैर्य के चादर तले कुछ पल जी लें,
क्योंकि ये गम तो दिल से नहीं निकलना है.
Post a Comment