Wednesday, September 1, 2010

कुछ सवाल---2

कुछ सवाल ---- 2

जब से तुम गये हो

हमे लगता है जैसे
आकाश की जगमगाहट
तारों का टिमटिमाना
चाँद का मुस्कुराना
बढ गया है--- शायद
शायद तुम्हारे आसमान मे जाने
का जश्न मना रहे हैं
तभी मन मे
एक और सवाल उठता है
मेरा विश्वास
मेरी आस्था
उस भगवान के प्रति
आहत हो उठती है
सभी धर्म और सन्त लोग कहते हैं
वो दुख हर्ता है पाप हरता है
दयालू है , करुणा निधान है
और भी न जाने कितनी उपमायें देते हैं
अगर वो सच मे करुणा निधान है
तो  एक माँ से उसके बेटे को छीन कर
कौन सी करुणा दिखा रहा है
फिर कुछ जवाब मिलते हैं
:ये पिछले जन्म के करम हैं
और रिश्तों की न सही
मगर क्या वो दयावान, पाप हरता
एक माँ के पिछले जन्म के
पाप नही हर सकता?
धर्म  तो ये भी कहते हैं
कि माँ का दर्जा भगवान से भी बडा होता है।
शायद भगवान की कोई माँ नही होती
उसे दया ममता से कुछ लेना देना नही
या वो केवल अपनी शक्ति दिखाने के लिये
ऐसे खेल खेलता है
आज तुम्हारे जाने से
इन सभी  आस्थाओं पर
एक प्रश्न चिन्ह लग गया है।
और ये सवाल  पर सवाल
तुम्हारी माँ तुम्हारे भाई से
बहुत से सवाल करती है
और वो सब तुम्हारे जवाब की
प्रतीक्षा मे हैं मगर
मुझे पता है--- ये सवाल सदियों
से कई माँयें ,भाई बहन पत्नियाँ करती रही हैं
मैने भी अपने बेटे की मौत पर किये थे।
जब उन्हें जवाब नही मिले
तो फिर इन्हें कैसे मिलेंगे
इनका हल भी हमे खुद ढूँढना पडेगा
जैसे मैने ढूँढ लिया था
ये वक्त का मरहम
बडे बडे घाव भी भर देता है
मगर ये सवाल वक्त बेवक्त
 जीवन भर हमारा पीछा नही छोडते
तुम्हारे जाने से मौत ही नही
ज़िन्दगी भी एक सवाल बन गयी है
लेकिन हम सब मिल कर
इन सवालों का हल ढूँढ लेंगे
इनके साथ जीयेंगे
मगर तुम खुश रहना
बहुत याद आया करोगे
आ कर रुलाया करोगे
मगर फिर भी
तुम्हारी तरह मुस्कुराना हैं हंसना हंसाना है
तुम्हारी तरह जीना है
क्यों कि तुम बहुत अच्छे थे
अपने थे, दिल के करीब
ये मत समझना मेरे सवाल खत्म हो गये हैं
कल फिर आऊँगी कुछ और सवाल ले कर।
तब तक तुम इन चाँद तारों के शहर मे जश्न मनाओ

3 comments:

रानीविशाल said...

वैसे किसी के दर्द पर ढाडस दिलाना और उस दर्द को सहन करना बहुत बड़ा फर्क है दोनों बातों में लेकिन फिर भी आपको एक बात ज़रूर कहूँगी .....दिल को एक तस्सली सी मिलाती है इसे याद कर के कि यहाँ कुछ भी सदा के लिए नहीं सब कुछ नश्वर है आप और हम भी सदा इस दुनिया में न रहेंगे लेकिन असामयिक होना बहुत कष्टकारक है सम्झ्सकती हूँ .....इस पीड़ा को भी पर कहीं न कहीं उनकी आत्मा अपने परिजनों को इस पीड़ा में देख कष्ट का अनुभव कर रही होंगी उनके अपने खुश रहे उन्हें दर्द से नहीं ख़ुशी ससे याद करें इससे उन्हें सुख और शांति प्राप्त होगी .....!
ईश्वर से पुनः प्रार्थना कराती हूँ कि आपको इस पीड़ा से उभर पाने कि शक्ति दे .

अविनाश वाचस्पति said...

अनूप यही हैं
सब चेहरों में देखें
हर पुत्र में देखें
सब युवाओं में देखें।

Unknown said...

Its a very tragic incident very sorrowful.We are toys in hands of Almighty,he breaks us when he wants.We cry we oppose him and then we remain silent in indignation...tragedies like this one are uncalled for and unacceptable.....we can never come to terms with such things..life never goes on...it stops on just one thing ..why? & what for? why?