Sunday, August 29, 2010

एक सांस का फासला

एक साँस का फासला


ज़िन्दगी और मौत

केवल एक साँस का फासला
मगर जन्मों की दूरी

और तुम

कितनी आसानी से

अटक गये उस पर

नहीं बढाया कदम

दूसरी साँस की ओर

शायद तुम्हारा प्रतिशोध था

अपनी ज़िन्दगी से

शायद तुम सही थे

तुम इस फासले के

घोर सन्नाटे का

एहसास करवाना चाहते थे

और जीने वालों के लिये

छोड जाना चाहते थे

कुछ नमूने कि

तुम भी जी कर दिखाओ

मेरी तरह जी कर

देना चाहते थे एक टीस

जो मौत से भी असह है

देखना चाहती हूँ मै भी

इस सन्नाटे का एक एक पल

तुम कैसे जीये थे

उस आखिरी साँस को लेते हुये

हाँ बस इतना ही कर सकती हूँ

हा ! क्या तकदीर है?

कितनी बेबसी है

एक माँ के लिये जीना

बेटे की मौत के बाद

और उसके अँदाज़ मे जीना

हंसते मुस्कुराते जीना

काश! हम ये कर पायें

यही तो सिखाया है तुम ने

2 comments:

रानीविशाल said...

Oh! saara dard dil ka shabdo me ubhar aaya..

अविनाश वाचस्पति said...

घटना जो घटी नहीं
मन में बढ़ गई।